मैंने केवल पढ़ा था की कृष्ण अपने अंतिम समय में व्याध को, जिस के तीर के कारण कृष्ण का देहावसान हुआ
था, देख करके करुणा भाव से मुस्कुराए थे और उसको क्षमा कर दिया था; मैंने केवल पढ़ा था की जीसस
क्राइस्ट अपने को सूली पर लटकाने वालों को देख कर के करुणा भाव से मुस्कुराए थे; मैंने केवल पढ़ा था कि
बाबा बंदा सिंह बहादुर जिनके शरीर से एक एक पाव माँस नोचा जा रहा था और जब केवल हड्डियाँ बची रह
गई थी तब उनके मुंह में उनके ही बेटे का दिल काट कर के घुसेड़ा गया, तब भी वह ऐसा नृशंस कार्य करने
वालों को देखकर करुणा भाव से मुस्कुराए थे, लेकिन जब मैंने पालघर में सामूहिक रूप से पीट-पीट कर मारे
जाने वाले संत कल्पवृक्ष गिरि जी का यह चित्र देखा तो मुझे विश्वास हो गया कि जो मैंने पढ़ा था, वह सारा
का सारा सच था। Palghar Mob lynching- Saints last smile पालघर मॉब लिंचिंग अंतिम मुस्कान |
वालों को भी देख करके करुणा भाव से इसी तरह मुस्कुरा सकते हैं। संत कल्पवृक्ष गिरि को मेरा नमन, मेरी
श्रद्धांजलि; लेकिन यह लेख मैं इस महान संत को श्रद्धांजलि देने के लिए नहीं लिख रहा हूं।
मैं इस ब्लॉग को इस भीषण दुर्घटना से उत्पन्न जो तमाम प्रश्न है उनको उठाने के लिए यह आलेख लिख रहा
हूं।
हूं।
इस घटना के बाद इस घटना को लेकर दो तरह की प्रतिक्रियाएँ सामने आई।
एक तो कि यह सारा एक षड्यंत्र के तहत किया गया था जिसमें महाराष्ट्र की पुलिस भी शामिल थी।
यह सब केवल हिंदू संतो को मारने का षड्यंत्र था और इसमें तत्कालीन सरकार की भी एक मूक सहमति थी
मूक सहमति इसलिए मैं कह रहा हूं कि जो भी नीतियाँ ऊपर राजधानियों में बनती है या सोची जाती है नीचे
तक उनका विस्तार हो जाता है और छोटे से छोटा प्रशासनिक अधिकारी भी धीरे-धीरे उन्हीं का पालन करने
लगता है तो अगर महाराष्ट्र की सरकार की जैसा आलोचना की जा रही है या फिर जैसा कहा जा रहा है हिंदू
विरोधी नीतियाँ उनके क्रियाकलापों में आई तो नीचे उसका विस्तार हो गया और फिर जब इस भीड़ ने संतों को
मारना शुरू किया तो पुलिस वालों को भी मालूम था कि क्या करना है जैसा कि वीडियो में दिख रहा है कि
पुलिस वाले इतनी हिंसक भीड़ को देखते हुए भी अपने थाने से इन दोनों संतो को ले आए और जैसे बकरे को
ज़िबह किया जाता है उन्होंने भीड़ को सौंप दिया और इन दोनों संतों का संरक्षण करने का कोई भी प्रयास नहीं
किया
तो इसमें सबसे बड़ी बात निकल कर आती है कि अगर पुलिस यह सब जानबूझकर कर रही थी तो उन पुलिस
वालों को अपना वैधानिक कर्तव्य जिनके लिए उनको वेतन दिया जाता है उसका पालन न करने की क्या सजा
मिलेगी। लेकिन अगर हम और जो लोग इस षड्यंत्र में जो भीड़ की तरह शामिल थे और उस क्षेत्र में व्यापक
रूप से फैला हुआ जो हिंदू विरोधी रुख है उसका क्या? अब ऐसा कहा भी जा रहा है कि वह क्षेत्र किन्ही विशेष
रूप से ईसाई संगठनों के प्रभाव क्षेत्र में है जो सामान्यतया हिंदू धर्म के विरोध में है तो यह प्रश्न और गहरा हो
जाता है कि क्या भारत में ऐसी चीजों को क्षम्य किया जा सकता है ऐसी घृणा आधारित राजनीति को स्वीकार
किया जा सकता है?
यह सब केवल हिंदू संतो को मारने का षड्यंत्र था और इसमें तत्कालीन सरकार की भी एक मूक सहमति थी
मूक सहमति इसलिए मैं कह रहा हूं कि जो भी नीतियाँ ऊपर राजधानियों में बनती है या सोची जाती है नीचे
तक उनका विस्तार हो जाता है और छोटे से छोटा प्रशासनिक अधिकारी भी धीरे-धीरे उन्हीं का पालन करने
लगता है तो अगर महाराष्ट्र की सरकार की जैसा आलोचना की जा रही है या फिर जैसा कहा जा रहा है हिंदू
विरोधी नीतियाँ उनके क्रियाकलापों में आई तो नीचे उसका विस्तार हो गया और फिर जब इस भीड़ ने संतों को
मारना शुरू किया तो पुलिस वालों को भी मालूम था कि क्या करना है जैसा कि वीडियो में दिख रहा है कि
पुलिस वाले इतनी हिंसक भीड़ को देखते हुए भी अपने थाने से इन दोनों संतो को ले आए और जैसे बकरे को
ज़िबह किया जाता है उन्होंने भीड़ को सौंप दिया और इन दोनों संतों का संरक्षण करने का कोई भी प्रयास नहीं
किया
पालघर मॉब लिंचिंग- भीड़ तंत्र Palghar Mob Lynching-Crowd rules |
वालों को अपना वैधानिक कर्तव्य जिनके लिए उनको वेतन दिया जाता है उसका पालन न करने की क्या सजा
मिलेगी। लेकिन अगर हम और जो लोग इस षड्यंत्र में जो भीड़ की तरह शामिल थे और उस क्षेत्र में व्यापक
रूप से फैला हुआ जो हिंदू विरोधी रुख है उसका क्या? अब ऐसा कहा भी जा रहा है कि वह क्षेत्र किन्ही विशेष
रूप से ईसाई संगठनों के प्रभाव क्षेत्र में है जो सामान्यतया हिंदू धर्म के विरोध में है तो यह प्रश्न और गहरा हो
जाता है कि क्या भारत में ऐसी चीजों को क्षम्य किया जा सकता है ऐसी घृणा आधारित राजनीति को स्वीकार
किया जा सकता है?
पालघर मॉब लिंचिंग- ईसाई कम्यूनिस्ट गठजोड़ Palghar Mob Lynching- christian communist combine |
लेकिन अगर हटकर के दूसरे गुट को जो लोग इसे केवल आकस्मिक दुर्घटना बता रहे हैं और यह बता रहे हैं
कि यह भ्रम वश किया गया तो उससे प्रश्न और भी गहरे हो जाते हैं।
कि यह भ्रम वश किया गया तो उससे प्रश्न और भी गहरे हो जाते हैं।
पहली बात कि हम सब जानते हैं कि बार-बार यह बात उठाई गई है कि भारत में हर वर्ष लाखों बच्चे अपहरण
हो जा रहे हैं और इस कारण से जो समाज का निचला तबका है उसके अंदर एक बहुत ही भयानक असुरक्षा का
भाव उत्पन्न हो गया है और जब भी ऐसे लोग दिखते है जिस पर शक किया जा सके कि यह बच्चे उठा सकते
हैं उन पर अचानक सामूहिक रूप से आक्रमण कर देते हैं तो हम सबको मालूम है और लगातार सांख्यिकी में
डाटा में इस तरह की चीजें आ रही है तो राष्ट्रीय स्तर पर और राज्य स्तर पर सरकारी इस संबंध में क्या कर
रही है।
हो जा रहे हैं और इस कारण से जो समाज का निचला तबका है उसके अंदर एक बहुत ही भयानक असुरक्षा का
भाव उत्पन्न हो गया है और जब भी ऐसे लोग दिखते है जिस पर शक किया जा सके कि यह बच्चे उठा सकते
हैं उन पर अचानक सामूहिक रूप से आक्रमण कर देते हैं तो हम सबको मालूम है और लगातार सांख्यिकी में
डाटा में इस तरह की चीजें आ रही है तो राष्ट्रीय स्तर पर और राज्य स्तर पर सरकारी इस संबंध में क्या कर
रही है।
दूसरी बात महत्वपूर्ण है कि यह जो कंगारू कोर्ट का प्रचलन धीरे-धीरे भारत में बहुत ज्यादा बढ़ गया है खासकर
जो कोरोना वायरस के समय हम लोगों ने भारत में देखा कि तमाम समूह रूप से एक विशेष समुदाय में
अफ़वाह फैलाई गई और इस विशिष्ट समुदाय के लोगों ने स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को कोरोना योद्धाओं को पुलिस
को सरकारी व्यवस्था को को घेर घेर करके मारने की कोशिश की एवं बहुत सारी जगह लिंचिंग करने की भी
कोशिश की गई तो यह जो तुरंत बिना वैधानिक व्यवस्था की प्रतीक्षा किए हुए कंगारू कोर्ट वाली प्रवृत्ति है
इसका भी एक बहुत बड़ा प्रश्न है।
जो कोरोना वायरस के समय हम लोगों ने भारत में देखा कि तमाम समूह रूप से एक विशेष समुदाय में
अफ़वाह फैलाई गई और इस विशिष्ट समुदाय के लोगों ने स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को कोरोना योद्धाओं को पुलिस
को सरकारी व्यवस्था को को घेर घेर करके मारने की कोशिश की एवं बहुत सारी जगह लिंचिंग करने की भी
कोशिश की गई तो यह जो तुरंत बिना वैधानिक व्यवस्था की प्रतीक्षा किए हुए कंगारू कोर्ट वाली प्रवृत्ति है
इसका भी एक बहुत बड़ा प्रश्न है।
मुस्लिम भीड़ द्वारा डॉक्टरो पर हमला Doctors attacked by Muslim Mob |
अगर यह प्रवृत्ति पूरे समाज में हो रही है और खासकर इसके लिए सोशल मीडिया पर फैलाई गई अफ़वाह और
तरह तरह के भ्रमात्मक संदेश भी बहुत हद तक जिम्मेदार हैं, उसको रोकने के लिए हमारी व्यवस्था क्या कर
रही है क्योंकि अगर इसको रोका नहीं गया तो धीरे-धीरे यह प्रवृत्ति समाज के हर अंग में व्यापक रूप से फैल
जाएगी बताए कुछ खास कठमुल्ला टाइप समुदायों के।
तरह तरह के भ्रमात्मक संदेश भी बहुत हद तक जिम्मेदार हैं, उसको रोकने के लिए हमारी व्यवस्था क्या कर
रही है क्योंकि अगर इसको रोका नहीं गया तो धीरे-धीरे यह प्रवृत्ति समाज के हर अंग में व्यापक रूप से फैल
जाएगी बताए कुछ खास कठमुल्ला टाइप समुदायों के।
तीसरी जो महत्वपूर्ण बात है कि जिस तरह से भगवा वस्त्र पहने हुए गेरुआ वस्त्र पहने हुए संतों पर आक्रमण
हुआ, वह एक नई प्रवृत्ति को जन्म देता है। सामान्यतः भारत में परंपरा रही है कि भगवा या गेरुआ वस्त्र
पहने हुए चल रहे लोगों को सम्मान की दृष्टि से देखा जाता था, उन्हें माना जाता था क्योंकि उन्होंने समाज
का परित्याग कर दिया है, संयासी हो गए हैं तो समाज पर उनके भरण-पोषण की ज़िम्मेदारी है, उनका सम्मान
करने की जिम्मेदारी है, उनकी देखभाल करने की जिम्मेदारी है। लेकिन सच बात है कि ऐसा नहीं हो रहा है
और इसके पीछे हमारे समाज में भगवा वस्त्र के दुरुपयोग का भी मामला बहुत ज्यादा जिम्मेदार है।
हुआ, वह एक नई प्रवृत्ति को जन्म देता है। सामान्यतः भारत में परंपरा रही है कि भगवा या गेरुआ वस्त्र
पहने हुए चल रहे लोगों को सम्मान की दृष्टि से देखा जाता था, उन्हें माना जाता था क्योंकि उन्होंने समाज
का परित्याग कर दिया है, संयासी हो गए हैं तो समाज पर उनके भरण-पोषण की ज़िम्मेदारी है, उनका सम्मान
करने की जिम्मेदारी है, उनकी देखभाल करने की जिम्मेदारी है। लेकिन सच बात है कि ऐसा नहीं हो रहा है
और इसके पीछे हमारे समाज में भगवा वस्त्र के दुरुपयोग का भी मामला बहुत ज्यादा जिम्मेदार है।
विगत में हम लोगों ने देखा है किस तरह से अनेक समुदाय जिनमें भगवा वस्त्र परंपरा नहीं है या नहीं रही है।,
वे लोग भी भगवा वस्त्र पहनकर विशिष्ट कारणों से जनता को भ्रमित करने का प्रयास कर रहे हैं उदाहरण
स्वरूप केरल में ईसाई पुजारियों द्वारा पादरियों द्वारा एक भगवा वस्त्र पहनकर के अपने धर्म का प्रचार करना,
जबकि ईसाई धर्म में भगवा वस्त्र पहने की कोई परंपरा नहीं है फिर भी अगर लोग इस तरह कर रहे थे
निश्चित ही इसलिए गेरुआ या भगवा बदनाम होता है।
वे लोग भी भगवा वस्त्र पहनकर विशिष्ट कारणों से जनता को भ्रमित करने का प्रयास कर रहे हैं उदाहरण
स्वरूप केरल में ईसाई पुजारियों द्वारा पादरियों द्वारा एक भगवा वस्त्र पहनकर के अपने धर्म का प्रचार करना,
जबकि ईसाई धर्म में भगवा वस्त्र पहने की कोई परंपरा नहीं है फिर भी अगर लोग इस तरह कर रहे थे
निश्चित ही इसलिए गेरुआ या भगवा बदनाम होता है।
Christian priests misusing saffron ईसाई पादरियों द्वारा भगवा एवं गेरुआ वस्त्रों का दुरुपयोग |
और भी अनेक लोगों ने देखा हैं कि समाज के अपराधी वर्ग और असामाजिक तत्व भगवा या गेरुआ पहन कर
कभी-कभी जनता को भ्रमित करने का प्रयास करते हैं तो क्या यह ऐसा समय आ गया है कि हम यह निर्धारण
करें कि भगवा या गेरुआ वस्त्र पहन के कौन-कौन आधिकारिक रूप से घूम सकता है । हिंदुओं का संपूर्ण संत
समाज क्या अपनी व्यवस्था में ऐसा कोई नीति निर्धारण कर सकता है कि जिस को आधिकारिक रूप से
अनुमति है वही भगवा या गेरुआ वस्त्र पहनकर के सार्वजनिक रूप से घूम सकता है यद्यपि ऐसी सोच या ऐसा
नियम मूल रूप से हिंदू धर्म की स्वतंत्रता की सोच के खिलाफ है लेकिन जब ऐसी विपरीत परिस्थिति आ गई है
अपने संत समाज पर संकट आ गया है तो शायद ऐसे कदम लेने का भी समय आ गया है।
कभी-कभी जनता को भ्रमित करने का प्रयास करते हैं तो क्या यह ऐसा समय आ गया है कि हम यह निर्धारण
करें कि भगवा या गेरुआ वस्त्र पहन के कौन-कौन आधिकारिक रूप से घूम सकता है । हिंदुओं का संपूर्ण संत
समाज क्या अपनी व्यवस्था में ऐसा कोई नीति निर्धारण कर सकता है कि जिस को आधिकारिक रूप से
अनुमति है वही भगवा या गेरुआ वस्त्र पहनकर के सार्वजनिक रूप से घूम सकता है यद्यपि ऐसी सोच या ऐसा
नियम मूल रूप से हिंदू धर्म की स्वतंत्रता की सोच के खिलाफ है लेकिन जब ऐसी विपरीत परिस्थिति आ गई है
अपने संत समाज पर संकट आ गया है तो शायद ऐसे कदम लेने का भी समय आ गया है।
अगली बात जो महत्वपूर्ण इस घटना से निकल कर आती है कि क्या पुलिस या प्रशासन से भय कहें या उससे
जुड़े रहने की प्रवृत्ति उसको संरक्षक मानने की प्रवृत्ति क्या भारत में एकदम से गायब हो गई है। पुलिस
अगर हम उनका वर्जन मानें तो उन्होंने दोनों संतो को बचाने का प्रयास किया था। अगर पुलिस जन दो लोग
को बचाने का प्रयास कर रहे हैं उन को संरक्षण देने का प्रयास कर रहे है और भीड़ उस प्रशासन के ऊपर
पुलिस के ऊपर जाकर के उन दो संतो को मार देती है तो क्या माना जाए
जुड़े रहने की प्रवृत्ति उसको संरक्षक मानने की प्रवृत्ति क्या भारत में एकदम से गायब हो गई है। पुलिस
अगर हम उनका वर्जन मानें तो उन्होंने दोनों संतो को बचाने का प्रयास किया था। अगर पुलिस जन दो लोग
को बचाने का प्रयास कर रहे हैं उन को संरक्षण देने का प्रयास कर रहे है और भीड़ उस प्रशासन के ऊपर
पुलिस के ऊपर जाकर के उन दो संतो को मार देती है तो क्या माना जाए
Killing of Hindu Saints by unruly mob अनियंत्रित भीड़ द्वारा हिंदू साधुओं की हत्या |
इस लाइन पर अगर हम आम जनता की सोच का विश्लेषण करें तो कई बातें हो सकती हैं, पहली की जनता
यह मान के चलती है कि वह पुलिस या प्रशासन से ऊपर है दूसरा उसकी सोच यह भी हो सकती है कि पुलिस
प्रशासन गलत चीजों को प्रश्रय दे रहा है तीसरी चीज की पुलिस प्रशासन से वह तथाकथित समुदाय या समूह
जुड़ा रहना नहीं चाहता है चौथा पुलिस प्रशासन से उसकी कोई सहानुभूति नहीं है
यह मान के चलती है कि वह पुलिस या प्रशासन से ऊपर है दूसरा उसकी सोच यह भी हो सकती है कि पुलिस
प्रशासन गलत चीजों को प्रश्रय दे रहा है तीसरी चीज की पुलिस प्रशासन से वह तथाकथित समुदाय या समूह
जुड़ा रहना नहीं चाहता है चौथा पुलिस प्रशासन से उसकी कोई सहानुभूति नहीं है
इन प्रश्नों पर भी सब को सोच कर के देखना चाहिए क्योंकि अंतिम रूप से किसी भी समाज व्यवस्था बनाने
की जिम्मेदारी प्रशासन की है प्रशासन का सम्मान याद है या सहानुभूति यह सब में से कुछ तो होनी चाहिए
प्रशासन कैसा है प्रशासन कैसा दिखना चाहिए इस पर भी सोचने की जरूरत है
की जिम्मेदारी प्रशासन की है प्रशासन का सम्मान याद है या सहानुभूति यह सब में से कुछ तो होनी चाहिए
प्रशासन कैसा है प्रशासन कैसा दिखना चाहिए इस पर भी सोचने की जरूरत है
फिर इन सब से उठकर के एकदम से गंभीर प्रश्न इस घटना से निकल कर आता है जिस तरह से भारत के कुछ राजनीतिक
दलों ने कुछ विशिष्ट विचारधारा के लोगों ने कुछ विशिष्ट समुदाय के लोगों ने इस मामले को इस हिंसक घटना को जस्टिफाई
करने की कोशिश की और उसकी धार कम करने की कोशिश की वह निश्चित ही इस देश के लिए इस राष्ट्र के लिए शुभ
नहीं है
दलों ने कुछ विशिष्ट विचारधारा के लोगों ने कुछ विशिष्ट समुदाय के लोगों ने इस मामले को इस हिंसक घटना को जस्टिफाई
करने की कोशिश की और उसकी धार कम करने की कोशिश की वह निश्चित ही इस देश के लिए इस राष्ट्र के लिए शुभ
नहीं है
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इस ब्लॉग के लेखक, आचार्य कल्कि कृष्णन्, स्थापित व प्रतिष्ठित ज्योतिषी व वास्तु सलाहकार हैं. वे ज्योतिष विज्ञान
सम्बन्धी सबसे प्रतिष्ठित वेबसाइट एस्ट्रोदेवं के संरक्षक हैं. अपने
सकारात्मक दृष्टिकोण के लिए विख्यात एवं अनेकानेक संस्थाओं से सम्मानित आचार्य
कल्कि कृष्णन्, स्वयं को ‘संतुष्टि व सामंजस्य विशेषज्ञ’ कहलाना पसंद करते हैं. उनसे आप http://astrodevam.com/contact-us.html
पर संपर्क कर सकते हैं.
Note: Āchary Kalki Krishnan, writer of this blog is an established and renowned Astrologer and Vastu Expert, and mentor of AstroDevam, most reliable website regarding Astrology and related sciences. Famous for his positive outlook and honored by a lot of organizations, Āchary Kalki Krishnan prefers to be addressed as ‘Wellness & Harmony Expert’.
He can be contacted at http://astrodevam.com/contact-us.html
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