श्राद्ध में भीष्म को तर्पण का रहस्य





यद्यपि पूरी श्राद्ध प्रक्रिया में, न केवल स्वयं के पूर्वजों को, बल्कि इस पूरी सृष्टि में व्याप्त समस्त शक्तियों व जीवों जैसे देवता, असुर , यक्ष, नाग, गन्धर्व, राक्षस, पिशाच, सिद्ध, कूष्माण्ड, वृक्षवर्ग, पक्षी, जलचर व नभचर आदि को श्रद्धा से स्मरण करके उनको सूक्ष्म ऊर्जा को अर्पण करने का विधान हैं,
पितरों को श्राद्ध का तर्पण
 किन्तु इस प्रक्रिया में पितामह भीष्म ही ऐसे एकमात्र अपवाद हैं, जिन्हें स्थापित देवताओं और ऋषियों में न होने के बावजूद न केवल विशिष्ट स्थान दिया गया हैं, बल्कि श्राद्ध प्रक्रिया में एक पूरा का पूरा तर्पण का विशिष्ट  मन्त्र  ही उनको समर्पित हैं. आजीवन ब्रह्मचारी रहे भीष्म को संबोधित श्राद्ध  तर्पण का मन्त्र निम्न प्रकार है

वैयाघ्रपदगोत्राय साङ्कृतिप्रवराय च । गङ्गापुत्राय भीष्माय प्रदास्येऽहं तिलोदकम् ।
अपुत्राय ददाम्येतत्सलिलं भीष्मवर्मणे ॥
महाभारत युद्ध में पितामह भीष्म

अगर हम मन्त्र के विस्तार पर और जिस तरह से श्राद्ध प्रक्रिया में पूरा का पूरा एक खंड भीष्म को समर्पित हैं, ध्यान दे तो उससे भीष्म का महत्व श्राद्ध की प्रक्रिया में रूद्र, वरुण, इंद्र, अग्नि, कुबेर आदि देवताओं से भी ज्यादा बढ़ा हुआ पाते हैं.
स्पष्ट रूप से श्राद्ध प्रक्रिया का नियोजन करने वाले ऋषियों ने ऐसा अकारण ही बिना किसी चिंतन के नहीं किया होंगा, एवं इसके पीछे कोई सुस्पष्ट चिंतन एवं भावी पीढी को कोई सन्देश देने का भाव अवश्य रहा होंगा, जैसा कि उनके अन्य कर्मकांडों के नियोजन से परिलक्षित होता हैं.
पितृपक्ष में पितरों को श्राद्ध


यथार्थ में यदि हम गंभीरता से अनुशीलन करे तो हमें भीष्म को श्राद्ध प्रक्रिया में इतना महत्व देने के पीछे हमारे नियामक ऋषियों का एक बहुत गहन विचार था. हम सब अपने पूर्वजों को श्राद्ध पक्ष में अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं, अर्थात हर मृत व्यक्ति को उसके वंशज उसकी आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध पक्ष में उपक्रम करते हैं, किन्तु वे व्यक्ति, जिन्होंने किसी सामाजिक हित के लिए पारिवारिक जीवन का परित्याग कर दिया, अर्थात विवाह ही नहीं किया, अतः उनका कोई वंशज तो रहा नहीं, फलस्वरूप उनका श्राद्ध कर्म करने वाला भी नहीं रहा. ऐसे ही व्यक्तियों के हित में हमारे प्राचीन सामाजिक नियामकों ने भीष्म को श्राद्ध व तर्पण देने का विधान किया.
हम सब को ज्ञात हैं कि भीष्म ने, जब पूरे कुरुवंश के सामने एक अत्यंत कठिन परिस्थिति उत्पन्न हो गयी थी, राज्य व समाज के हित में आजीवन ब्रह्मचर्य का व्रत लेकर उस परिस्थिति का समाधान किया था.
भीष्म प्रतिज्ञा
इसी तरह हमारे समाज में अनेकानेक लोग सर्वांगीण सामाजिक हित में पारिवारिक जीवन का परित्याग करते रहे हैं और करते रहेंगे. ऐसे ही लोगों की मुक्ति के लिए श्राद्ध पक्ष में भीष्म को तर्पण का विधान हैं. यहाँ पर भीष्म एक व्यक्ति नहीं रह जाते, बल्कि एक प्रतीक बन जाते हैं उन सभी महापुरुषों का, जो समाज के लिए स्व का बलिदान कर देते हैं. प्रतिनिधित्व करते हैं उन सभी त्यागी जनों का, जिन्होंने व्यष्टि के बजाए समष्टि को प्राथमिकता दी और परिवार हित के बजाए समाज हित में सन्नद्ध रहे.

आज जब हम श्राद्ध पक्ष में अपने पितरों का स्मरण व तर्पण करे, तो भीष्म के ही बहाने अपने समाज, शहर व देश के ऐसे हुतात्माओं को भी स्मरण कर ले; और साथ- साथ यदि कोई हमारे आसपास ऐसा कोई बलिदानी हैं, तो उसकी भी खोज खबर लेते रहे. आखिर पूरी श्राद्ध प्रक्रिया में पितामह भीष्म को महत्वपूर्ण स्थान देने के पीछे हमारे ऋषियों का यही मंतव्य ही तो था.
उपरोक्त लेख का सम्पादित प्रारूप भारत के प्रतिष्ठित दैनिक समाचारपत्र ‘नवभारत टाइम्स’ के 19 सितम्बर, 2017 के संस्करण के सम्पादकीय पृष्ठ पर प्रकाशित किया गया. ‘नवभारत टाइम्स’ को हार्दिक धन्यवाद.




Article by Achary Kalki Krishnan आचार्य कल्कि कृष्णन् का लेख

टिप्पणी: इस ब्लॉग के लेखक, आचार्य कल्कि कृष्णन्, स्थापित व प्रतिष्ठित ज्योतिषी व वास्तु सलाहकार हैं. वे ज्योतिष विज्ञान सम्बन्धी सबसे प्रतिष्ठित वेबसाइट एस्ट्रोदेवं के संरक्षक हैं. अपने सकारात्मक दृष्टिकोण के लिए विख्यात एवं अनेकानेक संस्थाओं से सम्मानित आचार्य कल्कि कृष्णन्,  स्वयं को संतुष्टि व सामंजस्य विशेषज्ञकहलाना पसंद करते हैं.  उनसे आप http://astrodevam.com/contact-us.html पर संपर्क कर सकते हैं.

Note: Āchary Kalki Krishnan, writer of this blog is an established and renowned Astrologer and Vastu Expert, and mentor of AstroDevam, most reliable website regarding Astrology and related sciences. Famous for his positive outlook and honored by a lot of organizations, Āchary Kalki Krishnan prefers to be addressed as ‘Wellness & Harmony Expert’.
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