आज जब अपने देश के परिदृश्य को ध्यान से देखता हूँ तो
एकबारगी बड़ी हैरानी सी होती हैं. कुछ ही महीनों बाद इस देश के लोकतंत्र का सबसे बड़ा उत्सव, या फिर कहें कि “महायुद्ध”
होने जा रहा है. लेकिन इस “महायुद्ध” में लड़ने के लिए कमर बाँधते योद्धा, नहीं
लगते आपको अनोखे? जिनके दादा परदादा ने भी कभी कवच व शिरस्त्राण नहीं धारण किये,
वे आज महारथियों की भूमिका निभा रहे हैं.
अभी कुछ ही साल पहले ये अरविंद केजरीवाल, कुमार विश्वास, सोमनाथ
भारती, और आशुतोष, अपने- अपने कार्यक्षेत्रों में व्यस्त और राजनीति के अखाड़े से
बहुत दूर शायद दर्शक दीर्घा से इस “महायुद्ध” का आनंद लेते थे. लेकिन आज?
आशुतोष की अजीब शख्सियत का अंदाज मुझे तब ही थोड़ा सा लग गया
था, जब वे अपने छोटे भाई की शादी में दिल्ली से लखनऊ पधारे. सूट-बूट से लकदक रहकर
शादी अटेंड करने वाली उत्तर भारतीय परंपरा के विपरीत यह कुंवारे बड़े भाई (हाँ, उस
समय आशुतोष अविवाहित ही थे) केवल जींस व सादी शर्ट में शादी में शामिल हुए. जहाँ
तक मुझे याद हैं, तब तक जेएनयू के अध्येता आशुतोषजी, अपने पिता के प्रतिभाशाली पुत्र को आई ए एस
बनाने के स्वप्न को बड़ी क्रूरता से मर्दन करके, प्रख्यात लेखिका मृणाल पांडे से
पत्रकारिता का गंडा बंधवा चुके थे.
मैं समझ सकता हूँ कि ‘हिंदुस्तान’ की अखबारी पत्रकारिता से
दूरदर्शनी पत्रकारिता के शीर्षस्थ पद पर पहुँचने की यात्रा बहुत सरल नहीं रही
होंगी, खासकर जब आपका कोई माई-बाप न हो. यद्यपि आशुतोष ने पत्रकारिता जगत में
व्याप्त ‘तुम हमारा ख्याल रखो, हम तुम्हारा’ के कीचड़ से लोहा तो नहीं लिया, किन्तु
इस कीचड़ में वे सने भी नहीं. जब इलेक्ट्रोनिक मीडिया के पुरोधा बड़ी आसानी से
लक्षपति व फिर कोटिपति बन जा रहे हो, तब ये बात बड़ी अजीब सी लग सकती हैं, किन्तु
‘जब आवे संतोष धन, सब धन धुरि समान’.
कभी कभी मैं सोचता हूँ कि जब उनके समकक्ष पत्रकार अपने
करोड़ो की गाड़ियों व आवासों की अगर कभी चर्चा करते होंगे तो क्या डबल सेलरी से घर
चलाने वाले आशुतोष में बेचारगी का भाव नहीं आता होंगा?
सोमनाथ भारती को जहाँ तक मैं समझता हूँ, इनके रिश्तेदार, जैसी कि मुझे खबर हैं, पहले ही ख़ारिज कर चुके थे. ऐसे आदमी को आप क्या कहेंगे जो देश की सबसे प्रतिष्ठित आई आई टी से बी टेक नहीं एम् टेक किया हो और फिर किसी बड़े कार्पोरेट का करोड़ो का पॅकेज लेने के बजाय, क़ानून की पढाई इस लिए करे कि समाज के किसी कमजोर हिस्से को अदालतों में आवाज मिल सके.
सोमनाथ भारती को जहाँ तक मैं समझता हूँ, इनके रिश्तेदार, जैसी कि मुझे खबर हैं, पहले ही ख़ारिज कर चुके थे. ऐसे आदमी को आप क्या कहेंगे जो देश की सबसे प्रतिष्ठित आई आई टी से बी टेक नहीं एम् टेक किया हो और फिर किसी बड़े कार्पोरेट का करोड़ो का पॅकेज लेने के बजाय, क़ानून की पढाई इस लिए करे कि समाज के किसी कमजोर हिस्से को अदालतों में आवाज मिल सके.
एक बार जब भारती एम् एल ए और फिर
मंत्री बने, तो सबको आस बंधी कि शायद अब कुछ माल मत्ता मिलेंगा, लेकिन जल्दी ही यह
भी आस खत्म हो गई. सच्ची बात ये हैं कि मंत्री बनते ही एक इनके सुदूर के रिश्तेदार
का इस भंगिमा का फोन कि, ‘सुनल खुशखबरी, भरतीउवा मंत्री बन गईल’, आनेपर मुझे उनके
उत्साह व आशाओं पर पानी फेरने में बड़ा कष्ट हुआ.
और इस लड़के, कुमार विश्वास, के बारे में क्या कहूं? मेरी
तरह हिन्दी काव्य के परिदृश्य पर दृष्टि रखने वाले सभी सुधीजन जानते हैं कि कैसे
इस प्रभावशाली व लोकप्रिय कवि को केवल इसलिए पहले तो कवि सम्मेलनों के निमंत्रण
आना बंद हो गए और अंततः लतिया-लतिया कर धीरे धीरे पूरे मैदान से ही बाहर कर दिया
गया, क्योंकि हिन्दी के चुके हुए मठाधीशों की चरण वन्दना करने में यह अक्षम था. आज
जो भी यह खाता कमाता हैं अपने दम पर.
जहाँ तक इन सबका जो आजकल सरदार बन कर बैठा हुआ हैं, यानी
अरविंद केजरीवाल का सम्बन्ध हैं, अपनी मेज खुद साफ़ करने वाले इस व्यक्ति को, एक एक पोस्टिंग में करोड़ों बनाने में निपुण आयकर
विभाग के इनके सहकर्मी कमिश्नरान पहले ही विक्षिप्त से थोड़ा कम करार कर चुके थे.
एक सज्जन ने तो कई साल पहले ही मुझसे व्यक्तिगत बातचीत में बताया था कि देख लेना
एक दिन जरूर यह किसी मेंटल हास्पिटल में मिलेंगा.
आज जब मैं निरपेक्ष भाव से इन सब को देखता हूँ तो इन सबमें कॉमन बात दिखती हैं कि न तो इन्होने व्यवस्था को स्वीकारा और न ही व्यवस्था ने इनको. इसके अलावा जहाँ भी ये पड़े गिरे थे, कोई बाप दादा या संरक्षक नहीं था. जहाँ तक मुझे जानकारी हैं सोमनाथ भारती जैसे घरफून्कियें भी, दिल्ली की बार काउन्सिल की राजनीति को बहुत माफिक नहीं आते. ऐसा लगता हैं कि बड़ी कड़ी धरती फाड़ कर निकले हैं ये लोकसभा चुनाव 2014 महायुद्ध के ये महारथी.
आज जब धरती फोड़कर निकले इन अजीबोगरीब इंसानों पर एक
सहानुभूतिपूर्वक दृष्टि डाल रहा हूँ, दो ऐसे और् पुरोधाओं पर मेरा ध्यान जाता हैं,
जो भारतीय राजनीति के सभी मुहावरों को झूठलाने बड़ी तेजी से आगे बढ़ रहे हैं. पहले
तो हैं बाबा रामदेव और दूसरे बहुचर्चित नरेन्द्र मोदी.
इनमें से पहले बाबा रामदेव, अभी कुछ सालों पहले तक हरिद्वार में साईकिल चलाकर अपने सपने को यथार्थ रूप देने के लिए संघर्षरत थे और आज कम से कम पूरे उत्तर भारत में ब्लॉक व तहसील स्तर पर लोकसभा चुनावों को अपना संघटन खड़ाकर प्रभावित करने जा रहे हैं, वहीँ नरेन्द्र मोदी, कल के आरएसएस के साधारण स्वयंसेवक, आज प्रधानमंत्री पद के सबसे सशक्त दावेदार बन कर उभर रहे हैं. कोई बड़ी पृष्ठभूमि न होने के अलावा, इन दोनों में एक और बड़ी अजीब समानता हैं; न तो बाबा रामदेव को माल मलाई खा खाकर हृष्ट पुष्ट आभामय शरीर लेकर घूमने वाले हिन्दू धर्मं के मठाधीशों में से कोई पसंद करता हैं, और न ही नरेन्द्र मोदी को भाजपा के टॉपमटॉप नेताओं में से कोई एक. लेकिन इन दोनों ने अपनी कर्मठता से ऐसा स्थान, खासकर नीचे की जनता में, बना लिया हैं, कि बेचारे भीगे कम्बल की तरह इनको मजबूरी में ढोया जा रहा हैं.
और शायद यही समानता इन दोनों को पहले वर्णित धरतीफोडूओं से
जोड़ देती हैं. हो गए बेगाने अपने ही गाँव में. मजे की बात हैं कि आने वाले लोकसभा
चुनाव के महायुद्ध में यही उजड़े- बिखरे लोग बड़ी बड़ी तलवारें भाजने जा रहे हैं और
शायद इतिहास के कुछ पन्ने अपने नाम लिखने जा रहे हैं.
Note: Āchary Kalki Krishnan, writer of
this blog is an established and renowned
Astrologer and Vastu Expert, and mentor of AstroDevam, most reliable website
regarding Astrology and related sciences. Famous for his positive outlook and
honored by a lot of organizations, Āchary Kalki Krishnan prefers to be
addressed as ‘Wellness & Harmony Expert’.
He can be contacted at http://astrodevam.com/contact-us.html
टिप्पणी: इस ब्लॉग के लेखक, आचार्य कल्कि कृष्णन्, स्थापित व प्रतिष्ठित ज्योतिषी व वास्तु सलाहकार हैं. वे ज्योतिष विज्ञान सम्बन्धी सबसे प्रतिष्ठित वेबसाइट एस्ट्रोदेवं के संरक्षक हैं. अपने सकारात्मक दृष्टिकोण के लिए विख्यात एवं अनेकानेक संस्थाओं से सम्मानित आचार्य कल्कि कृष्णन्, स्वयं को ‘संतुष्टि व सामंजस्य विशेषज्ञ’ कहलाना पसंद करते हैं. उनसे आप http://astrodevam.com/contact-us.html पर संपर्क कर सकते हैं.
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